Thursday, July 21, 2011

मौसम का राग - मल्हार

हिन्दुस्तानी संगीत में सावन के गीतों का अपना ही रंग और स्वाद है। लोक संगीत से लेकर शास्त्रीय गायन-वादन में रागबद्ध बंदिशों का भंडार है। दरबारी, मालकौंस की तरह मियां की मल्हार भी एक बड़ा और लोकप्रिय राग है। इसकी रहस्यपूर्ण परतों को खोलना आसान नहीं है।

बरसात के मौसम में राग मल्हार सावनी एहसास को दुगुना
कर देती है। कहा जाता है कि इस राग के गायन से बरसात आरम्भ हो जाती है।




पं. जसराज का यह अनुभव इसे प्रमाणित करता नज़र आ रहा है -
मेरा मानना है कि संगीत में दुनिया को बदलने की अदम्य शक्ति है। एक घटना मुझे इसका हर क्षण अहसास कराती रहती हैकुछ समय पूर्व मैं राजस्थान के नागौर गया था, जहां मैंने कुछ जमीन खरीदी थी। यह क्षेत्र काफी समय से सूखे की त्रासदी झेल रहा था। लोग बारिश की एक बूंद के लिए तरस रहे थे। जब कागजी कार्यवाही पूरी हो गई तो मैंने वकील से पूछा, ''महोदय, आपको क्या दे दूं?'' इस पर उनका उत्तर था, ''कृपया कुछ ऐसा सुना दें जिससे बारिश हो जाये।'' मैंने राग मल्हार गाया। आप यकीन मानें मेरा गाना चल रहा था और वहां जोरदार बारिश शुरू हो गई। हर श्रोता भीगते हुये सुन रहा था। यही वजह है कि मैं मानता हूं कि संगीत में हर दुख को कम करने की शक्ति है।

प्रस्तुत है गत वर्ष सावन के महीने में विरासत:दी हेरीटेज के बैनर तले डीडवाना में आयोजित मल्हार उत्सव में विभिन्न कलाकारों द्वारा दी गई कुछ मल्हारी प्रस्तुतियां. . . . .

1. राग मिया की मल्हार. देखी बरखा की सरसाइ....
गायक श्री सीताराम टेलर, तबला श्री शाहीद हुसैन,
वायलिन श्री रमेश कन्डारा


2. बरसौ लागी कारी बादरव....
गायक श्री सीताराम टेलर, तबला श्री शाहीद हुसैन,
वायलिन श्री रमेश कन्डारा

3. देस मल्हार - आई रे आई रे बदरिया बरसन हारी
गायक श्री सीताराम टेलर, तबला श्री शाहीद हुसैन,
वायलिन श्री रमेश कन्डारा





गायन श्री बाबू खान, तबला श्री अब्दुल्लाह,
वा
यलिन श्री रमेश कन्डारा





और अन्त में.....

एक कजरी
डा. रामगोपाल त्रिपाठी द्वारा (दुर्गाष्टमी समारोह में )
तबला पं. कृष्णानन्द व्यास

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